Sunday, September 20, 2015

Raahi...

ये रास्ते बुलाते मुझे,
सुनाते कोई नई दास्तान।
हर मोड़ नया, हर सड़क नई,
बंजारा दिल ले जाए जहाँ।

कहीं खेत खड़े खलिहान बने,
कहीं रेत पड़ी रेगिस्तान में।
बूँद बूँद मिलकर सागर फैला,
दुनिया कुछ नहीं बस एक मेला।

गुनगुनी धूप से सजी इमारतें,
बर्फ़ीली सफ़ेद चादर ओढ़े मकान।
छतों से गिरती टिप टिप बूँदें,
वो पतझड़ से ढकी बनिये की दुकान ।

चलता चलूँ, फिरता रहूँ दर-बदर,
कर रहा हूँ इन नज़ारों की खोज। 
बस एक होश, बस एक सोच,
जी लूँ मैं बन ख़ानाबदोश। 


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